चार पन्ने की जिंदगी में हंसी लिखू या गम लिखू
दोनों आते जाते रहते किसको ज्यादा या कम लिखू
चार पन्ने .............
गम को लिखता हूँ तो आँखों में हैं आंसू आते
जब ख़ुशी को लिखना चाहू अच्छे पल वो याद आते
जिंदगी के घाव या फिर वक़्त का मरहम लिखू
चार पन्ने .............
टूटते अरमानो से ही सब्र पैदा होता है
होता है अहसास ख़ुशी का गम में जब कोई रोता है
जीतने की कोशिशे या हार का मातम लिखू
चार पन्ने .............
हर गुजारिश हमसे कहती जीने की कोशिश करो
हर एक पल है खूबसूरत सिर्फ इसमें रंग भरो
रिश्तो का यूँ बिखरना या प्यार का मौसम लिखू
चार पन्ने .............
Wednesday, May 18, 2011
Saturday, May 14, 2011
धैर्य
मंजिलो की तरफ कदम सभी बढ़ाते है | न जाने कब किसको रास्ता मिल जाये |
लड़ना पड़ता है हर वक़्त रोशनी के लिए | न जाने कब अँधेरा हमें निगल जाये |
जीत होती नहीं तब तलक आखिरी | जब तलक हार से कुछ भी सीखा न जाये |
वक़्त मरहम है अपने हर दर्द का | तो क्यूँ न मुस्कुरा के दिन ये गुजार दिए जाएँ |
युद्ध
ना जिस्म बची , ना जान बचा !
ना गीता , ना कुरान बचा !!
नफ़रत की एक चिंगारी से !!!
ना कोई इंसान बचा !!!!
हर ओर चिताए जलती है !!!!!
बस राखों का तूफ़ान बचा !!!!!!
अख़बार
सुबह सुबह हम उठते है और पड़ते है अख़बार | अंतिम पेज पलटते ही कहते है बेकार |
पहले पेज पे होती है दुनिया भर की बकवास | कोई ऐसी न्यूज़ नहीं जो हो थोड़ी खास |
अन्दर के पेजों पर चोरी की भरमार | कोई घर बैठे लुटता ,कोई बीच बाज़ार |
थोडा आगे और बढ़ो तो अफसर, नेता की चाल | कोई घोटाला करता ,कोई है कंगाल |
संपादकीय में देते है कुछ लोग ...अपना ज्ञान| सिर्फ समश्या पैदा करते, नहीं कोई समाधान |
सिनेमा की रंग बिरंगी खबरे बड़ी निराली | किसने किसको थप्पड़ मारा,किसने किसको दी गाली|
खेलकूद के पूरे पन्ने पर राजनीती की बातें | जीत हार से फर्क नहीं , बस पैसे की सौगाते |
इसीलिए मैं सोच रहा हूँ पेपर बंद करवा दूं| रोज़ एक ही समाचार है सोच के काम चला लूं |
blindness is pain
ना गमें ज़िन्दगी में कोई आया, ना ख़ुशी में ही कोई आया !
हरदम रहा अकेला , कोई महफ़िल ना देख पाया !!
जब जब कदम बढाया, हर बार लडखडाया !!!
दुनिया की ठोकरों में , इन्साफ ढूंढता हूँ !!!!
मुझे क्यों बनाया मालिक, तुमसे आज पूछता हूँ !!!!!
(मैं कौन हूँ )
आंसू हूँ किसी की आँख का,या होठों की मुस्कान हूँ ?
जलता हुआ शम्मा हूँ ,या बुझता हुआ अरमान हूँ ??
जलजला ,तूफ़ान हूँ ,या दम तोड़ता इंसान हूँ ???
मुझको नहीं खुद की खबर ,मैं सत्य हूँ या ज्ञान हूँ ????
ढूँढता हूँ अस्तित्व अपना,मैं बोलता या मौन हूँ ?????
गर जानते हो तुम मुझे, तो बतला दो मैं कौन हूँ??????
.......नो स्मोकिंग
अपनी आँखों में अलग रंग बसाया हमने, आइना खुद को दिखाया हमने |
जब भी मुश्किल में हुए, खुद को महसूस किया ,किस तरह घर अपना जलाया हमने ||
अँधेरा बढता गया तो रोशनी चाही,जलते चिराग को क्यूँ बुझाया हमने|||
हर एक सांस से संवरती है जिंदगी अपनी,अपने हाथों से खुद को मिटाया हमने ||||
अब जा रहे हैं छोड़कर इस दुनिया को, धुएं में सब कुछ लुटाया हमने|||||
नेता
इन नेताओं का भी जवाब नहीं, इनके जैसा किसी का अंदाज़ नहीं
हर कोई इनके आगे फेल होता है, ये खुश होते है जब इन्हें जेल होता है
हर काम को करते है सफाई से, भाई को लड़ा देते है भाई से
चोरी करके खुद को मासूम दिखाते है, जनता को अपना हमदर्द बताते है
देश को बाहर से नहीं, इन गद्दारों से खतरा है, इनकी चालों से हमारा हाल बिगड़ा है
मिलेगी सजा इन्हें ऐसी, सितम मालिक वो ढाएगा
मरेंगे तड़पकर ये लोग , वो दिन जल्दी ही आएगा
नए साल
नए साल पर कुछ नया कीजिये, दूसरों के लिए भी दुआ कीजिये
अपनी ख़ुशी थोडा बिखराइये, फिर जिंदगी का मज़ा लीजिये
फूल बनिए ग़र जरूरत पड़े, फिर अपनी खुशबू को फैलाइए
रौशनी की कमी जहां महसूस हो, चिराग बनके वहाँ पर जल जाइये
सूरज उगे एक नया प्यार का,सबके दामन से अँधेरा मिटाइये
दीजिये फिर बधाई नए साल की, भूल के हर ग़मों को बस मुस्काइये
मोहब्बत
इस मोहब्बत में ना जाने क्यों इतने क़त्ल होते हैं
सौ में से दो चार लोग ही सफल होते हैं
पर जो सफल होते हैं उनमे अक्ल नहीं होती
इसलिए वो शादी करके खुद जिंदगी से बेदखल होते हैं
शादी तो पवित्र रिश्ता है, तो इतनो का खून क्यों बहाया
दूसरों की चिता पर लेटकर क्यूँ अपना घर बसाया
इसीलिए कहता हूँ शादी करने वाले वक़्त के मारे होते हैं
ज़िन्दगी के असली हीरो तो बस कुंवारे होते हैं
सौ में से दो चार लोग ही सफल होते हैं
पर जो सफल होते हैं उनमे अक्ल नहीं होती
इसलिए वो शादी करके खुद जिंदगी से बेदखल होते हैं
शादी तो पवित्र रिश्ता है, तो इतनो का खून क्यों बहाया
दूसरों की चिता पर लेटकर क्यूँ अपना घर बसाया
इसीलिए कहता हूँ शादी करने वाले वक़्त के मारे होते हैं
ज़िन्दगी के असली हीरो तो बस कुंवारे होते हैं
महंगाई
प्याज, टमाटर छोड़ के अब खाओ घासम घास|
महंगाई के मार से मिट गयी भूख और प्यास ||
मिट गयी भूख और प्यास,करो अब हफ्ते में एक दिन उपवास |||
कहत "निलेश" छोड़ के आईटी इंडस्ट्री ||||
प्याज ,टमाटर की घर पे खोलो मंडी |||||
महंगाई के मार से मिट गयी भूख और प्यास ||
मिट गयी भूख और प्यास,करो अब हफ्ते में एक दिन उपवास |||
कहत "निलेश" छोड़ के आईटी इंडस्ट्री ||||
प्याज ,टमाटर की घर पे खोलो मंडी |||||
यूँ फ़रिश्तों में ना................
यूँ फ़रिश्तों में ना ढूंढों हमको, हम तो इंसा है इंसानों में नजर आयेंगे |
मंदिर-मस्जिद में ना मिलेंगे तुमको, जहाँ लालच है वही मिल जायेंगे ||
यूँ फ़रिश्तों में ना................
जहाँ कही भी दिखे जलता हुआ घर, वही कही पे हँसते हुए दिख जायेंगे |
भूख से बेबस किसी बच्चे से पूछ लेना, वो तुम्हे मेरी असली पहचान बताएँगे ||
यूँ फ़रिश्तों में ना................जहाँ नफ़रत और दौलत की हवस जलती है, उसी रोशनी में तुमको नजर आएंगे |
जिंदगी लाश में तब्दील जहाँ होती है, कफ़न लाश का चुराते हुए मिल जायेंगे ||
यूँ फ़रिश्तों में ना................
हसरतो को ना बढाओ इतना.......
हसरतो को ना बढाओ इतना, कि दुनिया से नज़र हट जाये|
बोझ खुद पे ना बढाओ इतना, कि आदमी खुद में ही सिमट जाये ||
प्यार कपड़ो की तरह बदला ना करो, कि बाद में कपड़ो की तरह फट जाये |||
असमान को छूने की तब करो कोशिश, पैर पहले जमी पे टिक जाये ||||
खुद को मजबूत करो जीने के लिए, जिंदगी टुकड़ो में ना कही बट जाये |||||
.........बस ऐसे ही
दिल के दरख्तों में है कैफिअत उनकी, क्या बताये क्या है हैसिअत उनकी|
छाये रहते है वो खुमार बनके आँखों में, हर सोच में रहती है नसीहत उनकी||
तारीफ़ करते हैं ये तो है आदत अपनी, पूछ लो जहाँ से हकीक़त उनकी|||
हम तो उनकी दामन में मरने की इल्तेजा रखें, बस एक बार मिल जाये इजाजत उनकी||||
कमाल कर रहे हैं......
देश जल रहा है, आप जेब भर रहे हैं
शर्म नहीं आती है, कमाल कर रहे हैं
नोटों को पकाएंगे, नोटों को ही खायेंगे
क्या दौलत की चिता पर ही लेट कर जायेंगे
पैसे के लिए इंसान से हैवान बन रहे हैं
कमाल कर रहे हैं......
पकडे गए हैं, फिर भी सच बोलते नहीं
राज अपने दिल के खोलते नहीं
जिंदा है मगर फिक्र में हर रोज मर रहे हैं
हमार लइकवा
हमार लइकवा पढ़ेला दस में, ना माई के बस में ना बाऊ के बस में
रतिया के उठेला जरावेला चिराग,याद करेला गब्बर सिंह के डायलाग
परीक्षा में बैठेला लेके दुनालिया,हम कुछ कहिला ता कहेला तेरा क्या होगा रे कालिया
सिनेमा के पीछे हौए दीवाना,रोज रोज जाला ससुरा कइके बहाना
सिगरेट, बीड़ी खुलेआम पियेला,दारु बिना एक पल ना रहेला
हई हम परेशान कईसे समझाई,कईसे भला वोके रस्ते पे लाइ
फँसल बाड़ी हम येही कशमकश में,हमार लइकवा पड़ेला दस में ना
मैं अकेला
जब चले थे तब चले थे, अब कदम ठिठके हुए हैं
रास्ते में खो गए हैं, थोड़े से बहके हुए हैं
सांस ले लूँ एक पल को, फिर चलूँ रस्ते पे अपने
दूर तक कोई नहीं है, बस मैं अकेला और मेरे सपने
आँखें हैं बोझल सी मेरी, टूटता विश्वाश है
पर पहुँचना है मुझे, क्योंकि मंजिल ही मेरी प्यास है
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