Sunday, September 8, 2013


बचपन 

आओ हम सब अपने बचपन में लौट चले । 
खेलकूद जहाँ बड़े हुए उस आँगन में लौट चले । 
आओ हम सब अपने
जहाँ सुनहरी धूप थी, रंगी थी हर शाम ।
जहाँ न कोई फ़िक्र थी, नहीं था कोई काम । 
आओ फिर से उन बरसातों के दामन में लौट चले । 
आओ हम सब अपने 
जहाँ माँ की थपकी, लोरी से सपनो में हम खो जाते थे । 
जहाँ पिता हमें कंधो पर लेकर, सारा शहर घुमाते थे । 
जो भूल गए उन यादो के सावन में लौट चले। 
आओ हम सब अपने 
 जहाँ बाग़, बगीचे,तितली ,पक्षी, सबसे अपनी यारी थी ।
जहाँ दादा,दादी की बाँहों में हमने रात गुजारी थी । 
आओ उन प्यारी रातो के बंधन में लौट चले। 
आओ हम सब अपने 
जहाँ छीन गया अपना बचपन, हम बड़े हुए अरमानो से । 
जहाँ खुद को अकेला पाते है, हम घिरे हुए इंसानों से । 
आओ उन धुंधली यादो के दर्पण में लौट चले । 
आओ हम सब अपने बचपन में लौट चले । 
खेलकूद जहाँ बड़े हुए उस आँगन में लौट चले ।

Sunday, June 30, 2013

लड़किया  ......................


लड़कियों  को नहीं आराम है अपने इस देश में !
कभी बेटी,बहन, कभी पत्नी,कभी माता के वेश में !
खुद को मिटा देती है वो रिश्तों के नाम पर !
निश्वार्थ बिक जाती है वो प्यार के दाम पर !
कुछ क़त्ल कर दी जाती है जन्म ले नहीं  पाती !
कुछ जन्म लेकर अपनों के ताने सह नहीं पाती !
ना भूलिए की दुनिया टिकी है औरत के ही दम पर !
हर कदम पे उनका ये एहसान है हम पर !
मजबूत बनाना है गर इस देश को अपने !
तो इनका हक इनको दीजिये फिर देखिये सपने !



Saturday, May 11, 2013

अभिमन्यु.........

अभिमन्यु जब गिर धरा पर तो चीत्कार उठी धरती उस पल
अपनी छोटी सी जान पे उसने नाप दिया कौरव का बल
एक एक योद्धा एक एक  सेना के जितना बल रखता था
पर अभिमन्यु के बाणों के आगे कोई ना टिकता था
जब छिन्न भिन्न कर दिया उसने कौरव सेना के मान को
तब घेर लिया सबने मिलकर उस योद्धा बलवान को
कायरों के उस झुण्ड से लड़ता रहा वीर  बलवान
पर अंत निकट था उसका दे दिया उसने अपनी  जान
कथा नहीं ये व्यथा नहीं एक वीर की गौरव गाथा है
उम्र नहीं काम बड़ा हो ये हमको सिखलाता है