Sunday, September 8, 2013


बचपन 

आओ हम सब अपने बचपन में लौट चले । 
खेलकूद जहाँ बड़े हुए उस आँगन में लौट चले । 
आओ हम सब अपने
जहाँ सुनहरी धूप थी, रंगी थी हर शाम ।
जहाँ न कोई फ़िक्र थी, नहीं था कोई काम । 
आओ फिर से उन बरसातों के दामन में लौट चले । 
आओ हम सब अपने 
जहाँ माँ की थपकी, लोरी से सपनो में हम खो जाते थे । 
जहाँ पिता हमें कंधो पर लेकर, सारा शहर घुमाते थे । 
जो भूल गए उन यादो के सावन में लौट चले। 
आओ हम सब अपने 
 जहाँ बाग़, बगीचे,तितली ,पक्षी, सबसे अपनी यारी थी ।
जहाँ दादा,दादी की बाँहों में हमने रात गुजारी थी । 
आओ उन प्यारी रातो के बंधन में लौट चले। 
आओ हम सब अपने 
जहाँ छीन गया अपना बचपन, हम बड़े हुए अरमानो से । 
जहाँ खुद को अकेला पाते है, हम घिरे हुए इंसानों से । 
आओ उन धुंधली यादो के दर्पण में लौट चले । 
आओ हम सब अपने बचपन में लौट चले । 
खेलकूद जहाँ बड़े हुए उस आँगन में लौट चले ।

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