अभिमन्यु.........
अभिमन्यु जब गिर धरा पर तो चीत्कार उठी धरती उस पल
अपनी छोटी सी जान पे उसने नाप दिया कौरव का बल
एक एक योद्धा एक एक सेना के जितना बल रखता था
पर अभिमन्यु के बाणों के आगे कोई ना टिकता था
जब छिन्न भिन्न कर दिया उसने कौरव सेना के मान को
तब घेर लिया सबने मिलकर उस योद्धा बलवान को
कायरों के उस झुण्ड से लड़ता रहा वीर बलवान
पर अंत निकट था उसका दे दिया उसने अपनी जान
कथा नहीं ये व्यथा नहीं एक वीर की गौरव गाथा है
उम्र नहीं काम बड़ा हो ये हमको सिखलाता है
अभिमन्यु जब गिर धरा पर तो चीत्कार उठी धरती उस पल
अपनी छोटी सी जान पे उसने नाप दिया कौरव का बल
एक एक योद्धा एक एक सेना के जितना बल रखता था
पर अभिमन्यु के बाणों के आगे कोई ना टिकता था
जब छिन्न भिन्न कर दिया उसने कौरव सेना के मान को
तब घेर लिया सबने मिलकर उस योद्धा बलवान को
कायरों के उस झुण्ड से लड़ता रहा वीर बलवान
पर अंत निकट था उसका दे दिया उसने अपनी जान
कथा नहीं ये व्यथा नहीं एक वीर की गौरव गाथा है
उम्र नहीं काम बड़ा हो ये हमको सिखलाता है